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मीडिया बिकाऊ है?

भाव
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मीडिया बिकाऊ है?
राज नेताओं को तों बिकते हुए देखा है. कारण यह है कि उन्होंने कमाने एवं लूटने का अवसर चाहिए. और यह तभी संभव है जब वे मंत्रिमंडल में स्थान पा जाए. सरकारी कर्मचारियों को तों बिकते देखा है. ताकि वे एक तों वे अपने प्रोमोसन के लिये अपने बॉस को मन्हंगे तोहफा भेंट कर सकें. तथा अपनी नौकरी के लिये दिये गये भारी भरकम रिश्वत क़ी रकम को सूद व्याज समेत वापस ले सकें. किन्तु अभी अब तक मीडिया को बिकते हुए नहीं देखा था. वैसे वह भी आज क़ी तारीख में संभव हो गया. अपनी टी आर पी बढाने के लिये मीडिया भी बिकाऊ है. बस खरीद दार चाहिए. ज्योही कोई खरीददार मिल जाय इसे बिकने में तनिक भी विलम्ब नहीं है.
यदि ऐसा नहीं है तों आसाम में एक लड़की से सिर्फ छेड़ खानी हुई थी. लेकिन उसको इतना तूल दिया गया कि वह एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन कर मीडिया पर छाया रहा. रात दिन चौबीसों घंटे उसी का प्रचार प्रसार होता रहा. जब कि केवल उस लड़की के साथ छेड़ खानी ही हुई थी. सारी सरकारी मशीनरी हरक़त में आ गयी. महिला आयोग से लेकर जांच आयोग एवं संतरी से लेकर मंत्री तक सभी इस मिसन छेड़ खानी से जुड़ गये. और जब उस लड़की को सब मिलाकर पच्चीस तीस लाख रुपये हर्जाना के तौर पर मिल गये. सब जहाँ से तहँ चुप हो गये. तों क्या इसके लिये मीडिया को निर्धारित “प्रचार कमीशन” मिल गया?
यदि ऐसा नहीं है तों 3 जून को सहारन पुर के छत्ता जम्बू दास में सरेआम लड़की क़ी इज्ज़त लूटी गयी. मीडिया ने उसके लिये कितनी बार हाय तौबा मचाई? इलाहाबाद में सिविल लाइन में 12 जुलाई को एक छात्रा को घसीट कर उसके साथ होटल में बलात्कार किया गया. मीडिया कहाँ थी? इलाहाबाद के ही कौशाम्बी में एक लड़की एवं उसकी माँ को बेइज्ज़त किया गया. मीडिया क्या कर रही थी? राजस्थान के झोटवाडा में 14 जून को एक लड़की क़ी इज्ज़त लूटी गयी. मीडिया ने क्यों नहीं उसे अपनी सुर्ख़ियों में शामिल किया? उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में 4 जुलाई को एक लड़की को अगवा कर उसके साथ बलात्कार किया गया. मीडिया क्या छुट्टी पर थी? दिल्ली के प्रीतमपूरा में पहले जुलाई को एक छात्रा को उसके घर से उठाकर उसके साथ बलात्कार किया गया. लखनऊ के डाली गंज से 4 जुलाई को ही एक लडकी को उठा लिया गया. तथा उसका बलात्कार कर उसका क़त्ल कर दिया गया. उस समय महिला आयोग एवं मीडिया क्या पिक निक मना रही थी?
लेकिन ऐसा लग रहा है कि इन सब वारदातो में मीडिया का कोई कमीशन निर्धारित नहीं किया गया था. और मीडिया ने इसे अपनी सुर्खियों में शामिल नहीं किया. और न ही कोई हाय तौबा मचाई. न तों महिला आयोग ने ही इधर देखना उचित समझा.
इससे तों यही साबित होता है. एक लड़की के साथ मात्र छेड़ खानी क़ी गयी तों मीडिया ने इसका बवंडर बना दिया. लेकिन जिसकी लड़की क़ी आबरू तक लूट ली गयी, उधर मीडिया उसकी तरफ मीडिया ने आँख उठाकर तक नहीं देखा. महिला आयोग एवं सरकार भी कुछ रुपया पैसा ले देकर इस विषय क़ी इतिश्री कर चुप चाप बैठ गये.
ऐसा लग रहा है अब मीडिया को सिर्फ एवं सिर्फ पैसा दिखाई दे रहा है. उसे वास्तविकता या आवश्यकता से कुछ भी लेना देना नहीं रह गया है. अत्याचार एवं भ्रष्टाचार से कुछ भी लेना देना नहीं है. यदि ऐसा नहीं है तों माननीय मुख्य मंत्री श्री अखिलेश यादव जी क़ी विरादरी के लोग आज छाती पीट कर सरेआम डकैती ड़ाल रहे है. और वह भी पुलिस के आला अफसरों के संरक्षण में. लेकिन मीडिया इसके पीछे नहीं पड़ना नहीं चाहती. क्योकि इससे टी आर पी मिलती नहीं दिखाई देती.
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सिकन्दर पुर तहसील के संदवापुर गाँव क़ी अनाथ लड़की एवं मानसिक रूप से विक्षिप्त उसके भाई क़ी जमीन माननीय मुख्य मंत्री जी के बिरादर भाई अपनी ही बिरादरी के पटवारी एवं कानून गो क़ी सहायता से हड़प लिये है. और वह लड़की आज निर्वासित जीवन जी रही है. डर के मारे कही मुँह नहीं खोल पा रही है.
लेकिन मीडिया को शायद उस निःसहाय गरीब लड़की से किसी प्रकार के कमीशन क़ी कोई उम्मीद नहीं दिखाई नहीं दे रही है. और मीडिया उसका हाय तौबा नहीं मचा रही है.
यदि ऐसा नहीं है तों मीडिया के पास इतना समय है कि वह बताये कि प्रणव दादा ने जो कमीज पहन रखा है उसके बांह में नीचे क़ी तरफ सफ़ेद रंग का बटन लगा है. तथा उनके बहन ने जो नीले रंग क़ी साड़ी पहन रखी है उसका बार्डर कुछ हरे रंग का है. सुनीता विलियम्स को जूता पहनाने वाले शख्स के पैंट के दाहिने पाँव के निचले हिस्से पर पडा हुआ क्रीज बहुत सुन्दर दिखाई दे रहा है. यह सब निरर्थक “रनिंग कमेंटरी” देने का वक़्त है. किन्तु एक असहाय लड़की क़ी ज़मीन जायदाद के साथ उसकी ज़िंदगी ही खतरे में पडी हुई है, इसके लिये समय नहीं है.
यदि मीडिया बिकाऊ नहीं है तों इसके पीछे और क्या कारण हो सकता है?
भावनाथ

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